ढाका-बांग्लादेश सर्कार ने हाल ही में स्कूल में पढाई जाने वाली बांग्ला भाषा की किताबों से रबीन्द्रनाथ टैगोर और जाने मने बांग्ला लेखक शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की कविता और कहानी हटा दी है।

शिक्षा मंत्रालय ने पहली से लेकर आठवी कक्षा तक की किताबों मेंइन भारी फेर बदल किआ है। सरकार ने मदरसे में पढने वाले शिक्षकों और विद्यार्थियों के एक काटटार दबाव समूह हिफाज़त-ए-इस्लाम की मांग पर यह कदम उठाया है। हिफाज़त-ए-इस्लाम लंबे समय से कविता और कहानियों के 17 पाठों को हटाने की मांग कर रहा था। इसके पीछे दलील थी की यह कविता और कहानियां इस्लाम विरोधी हैं और इनसे नास्तिक विचारधारा को बढ़ावा मिल रहा है। हालाँकि सरकार के इस कदम का देश में काफी विरोध भी  हो रहा है। स्कूलों में पहली से दसवी कक्षा के लिए बांग्ला किताबे तैयार करने वाली नेशनल करिकुलम एंड टेक्स्ट बुक बोर्ड (NCTB) में शामिल 13 संपादक और लेखकों ने सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए कहा, उन्हें किताबों में किये जाने वाले बदलाव को लेकर अँधेरे में रखा गया है।

कौन से पाठ हटे?

6वीं कक्षा से सत्येन सेन द्वारा लिखी ‘लाल गोरुटा’ 

7वीं कक्षा से शरत चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखी कहानी ‘ललू’ 

रबीन्द्र नाथ टैगोर की कविता ‘बांग्लादेशेर हृदोय’ 

लेख़क हुमायूं आजाद द्वारा लिखित कविता ‘बोई’

उपेन्द्र किशोर द्वारा लिखित रामायण की छोटी-छोटी कथाएं
हटाने के पीछे दलील.…….

कट्टरपंथियों का मत है कि इन पाठों के द्वारा हिंदुत्व को बढ़ावा मिलता है व इन पाठों के द्वारा नास्तिक विचारधारा को बढ़ावा मिलता है।

पाठों को हटाने के पीछे दलील जो भी हो परंतु इस वाकिये से यह संकेत मिलता है कि बांग्लादेश में प्रजातंत्र नहीं बल्कि कट्टरता का राज है।

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